Congress President Election: भारत जोड़ो यात्रा शुरू होने से पहले गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की बात हुई, तो इस बैठक में दो नाम सामने आए। यह नाम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के थे। इन नामों पर गांधी परिवार की भी सहमति थी। पर, गहलोत इस पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष की पहली पसंद बने। खड़गे का नाम पार्टी में आंतरिक उथल-पुथल के बाद अंत में तय हुआ।
इसकी कई वजहें थी। पहली यह कि पार्टी उत्तर भारत और हिंदी भाषी नेता को अध्यक्ष पद सौंपना चाहती थी। इसके साथ अशोक गहलोत ओबीसी नेता भी हैं। वहीं, गहलोत को अध्यक्ष बनाने से सचिन पायलट की मुख्यमंत्री बनने की मांग भी पूरी हो रही थी। इसलिए गहलोत को चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया गया। गहलोत ने चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया।
राजस्थान के सियासी बवाल से बदली तस्वीर
राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल की बैठक को लेकर हुए घटनाक्रम से तस्वीर बदल गई। सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व ने जयपुर गए पर्यवेक्षकों को इस पूरे घटनाक्रम से मुख्यमंत्री को अलग रखने के निर्देश दिए। पर्यवेक्षकों ने अपनी रिपोर्ट में अशोक गहलोत को क्लीनचिट दे दी। पर गहलोत ने दिल्ली पहुंचकर अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।
अगड़ी जाति से होने के कारण कटा दिग्विजय का पत्ता?
इसके बाद अध्यक्ष पद के लिए नए उम्मीदवार की तलाश शुरू हुई। दिग्विजय सिंह के मैदान में आने के बाद पार्टी नेताओं ने सोनिया गांधी को समझाया कि कांग्रेस का मूल वोट बैंक दलित है। जबकि दिग्विजय सिंह सहित बाकी दावेदार अगड़ी जाति के हैं। दलित नेता को अध्यक्ष बनाने से पूरे देश में दलित और महादलित मतदाताओं में सकारात्मक संदेश जाएगा।
राहुल गांधी से बात करने के बाद तय हुआ था खड़गे का नाम
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दलित नेता के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे, मुकुल वासनिक, सुशील कुमार शिंदे और कुमारी शैलजा के नाम पर विचार हुआ। खड़गे और शिंदे की उम्र ज्यादा होने की वजह से मुकुल वासनिक पर चर्चा हुई। वासनिक से बात करने की जिम्मेदारी अशोक गहलोत को दी गई। गुरुवार देर रात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल की बैठक हुई। राहुल गांधी से भी चर्चा हुई और खड़गे का नाम तय किया। इसके बाद शुक्रवार को केसी वेणुगोपाल ने पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं से बात कर मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम पर सहमति बनाई। इसके पीछे एक वजह यह भी थी कि खड़गे के नाम पर असंतुष्ट गुट के नेताओं को भी कोई ऐतराज नहीं था। वहीं, वासनिक असंतुष्ट गुट में शामिल रहे हैं। ऐसे में पार्टी हाईकमान को वासनिक की वफादारी पर बहुत भरोसा नहीं था।