
बदलती भू राजनीतिक स्थितियों के बीच चीन के विदेश मंत्री वांग यी की अचानक हुई भारत यात्रा को रिश्तों में सुधारने की पहल के रूप में देखा जा रहा है। शुक्रवार को जब वे विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उससे पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मिले तो उन्हें स्पष्ट तौर पर यह संकेत दे दिया गया है कि रिश्तों में सुधार का इच्छुक भारत भी है। लेकिन तभी संभव है जब सीमा पर शांति कायम हो। भारत ने यह जता दिया कि उसके लिए सबसे पहले एलएसी का मुद्दा अहम है। उसके बाद ही बाकी मुद्दों पर बात हो सकती है।
सूत्रों के अनुसार, चीनी विदेश मंत्री ने डोभाल को चीन यात्रा का न्योता भी दिया। लेकिन डोभाल ने दो टूक कहा-जब तक एलएसी पर स्थितियां पहले जैसी सामान्य होने पर ही यात्रा संभव है। दरअसल, अप्रैल 2020 से पहले तक सीमा विवाद जारी होने के बावजूद द्विपक्षीय संबंध अच्छे रहे हैं। लेकिन गलवान घाटी में हुई हिंसक घटना के बाद ये बिगड़े हैं। चीन उस घटना को अलग रखते हुए द्विपक्षीय संबंधों में मजबूती चाहता है। जबकि भारत के लिए एलएसी पर अप्रैल 2020 से पूर्व की स्थिति बहाली अहम है।
आसार: रिश्तों में जमी बर्फ पिघलेगी
विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि गलवान घाटी संघर्ष के बाद चीन के किसी बड़े पदाधिकारी की यह पहली भारत यात्रा है। इसलिए आने वाले दिनों में रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद है। हॉट स्प्रिंग में सैनिकों को पीछे हटाने के मुद्दे पर आगामी वार्ताओं में सहमति बनेगी।
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आशंका: चीन मीठी बातें करने में माहिर
चीन के रुख पर भारत आशंकित भी है। सूत्र ने कहा कि चीन का शीर्ष नेतृत्व मीठी बातें करने में माहिर है। इसलिए वांग ने भी कहा कि दोनों देश मिलकर काम करते हैं तो पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण होगा। लेकिन ये बातें कहने-सुनने में अच्छी लगती है। निचले स्तर पर चाहे वह सेना हो या नौकरशाही उसका रुख टेढ़ा ही रहता है। पिछले दो सालों में जयशंकर की वांग से सितंबर 2020 में मास्को में और 2021 में जुलाई एवं सितंबर में दुबांशे में मुलाकातें हुईं। कई बार फोन से भी बात हुई। बावजूद इसके एलएसी पर चीन के रुख में खास बदलाव नहीं दिखा है। शीर्ष कमांडर स्तर की वार्ता में चीनी अधिकारियों का रुख अड़ियल ही रहता है। उसमें रिश्ते सुधारने की लालसा नहीं दिखती है।
अटकलें: रूस-यूक्रेन को लेकर चर्चाएं
रूस-यूक्रेन घटनाक्रम के मद्देनजर भी वांग की यात्रा को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि, विदेश मंत्रालय का मानना है कि इनमें कोई दम नहीं है। दरअसल, रूस-भारत के रिश्ते मजबूत हैं। वह कभी भी भारत से सीधी बात कर सकता है। ऐसे में चीन के जरिये उसे संदेश भेजने की जरूरत नहीं है। हां, यह जरूर हो सकता है कि बदलती भू राजनीतिक परिस्थितियों में चीन के विदेश मंत्री बिना बुलाए कई देशों की यात्रा कर चीन का महत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हों।