
इन दिनों सिनेमा में काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। एक ओर जहां बड़ी संख्या में साउथ की फिल्मों को दर्शक पसंद कर रहे हैं तो हिंदी सिनेमा की आलोचना कर रहे है। इस बीच हिंदी सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में शुमार कबीर खान ने कहा है कि राष्ट्रवाद को एक ‘विलेन’ की जरूरत होती है, देशभक्ति को नहीं। वहीं दूसरी ओर करण जौहर ने कहा कि हिंदी सिनेमा कई बार झुंड में चलने की मानसिकता का शिकार हो जाता है। नीचे पढ़िए दोनों खबरें विस्तार से…
झुंड में चलने की मानसिकता का शिकार
मशहूर फिल्म निर्माता करण जौहर ने शनिवार को कहा कि हिंदी सिनेमा कभी-कभी झुंड में चलने की मानसिकता का शिकार हो जाता है, जहां फिल्म निर्माता कुछ नया करने के बजाय लोकप्रिय चलन वाली चीजों के पीछे भागने लगते हैं। करण जौहर ने एबीपी नेटवर्क के ‘भारत के विचार’ सम्मेलन में बोल रहे थे, जहां उन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग के उदय और बॉलीवुड के लिए सीख पर चर्चा की। करण ने फिल्म आलोचक मयंक शेखर से बातचीत में कहा, ‘मैं अपने आप को भी उसी श्रेणी में रख रहा हूं जब मैं कहता हूं कि हिंदी सिनेमा, मुझे लगता है कि कई बार हम झुंड में चलने की मानसिकता का शिकार हो जाते हैं।’ उन्होंने उदाहरण दिए कि कैसे ऐसी कहानियों की बाढ़ आ गयी है जो या तो बायोपिक हैं या छोटे शहरों की कहानियां हैं। उन्होंने कहा, ‘मैंने भी ऐसा ही किया है। मैंने कई रास्ते नहीं बनाए। मैंने चलन का पीछा ही किया है। हिंदी सिनेमा में यही होता है। हम कई बार अपने विश्वास पर अड़े रहने का साहस खो देते हैं।’
करण जौहर ने आगे कहा कि दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग पिछले कुछ वर्षों से फिल्में बनाने के अलग रास्ते पर चल रहा है। वह देशभर में रिलीज हुई एसएस राजमौली की फिल्म ‘आरआरआर’ की बॉक्स ऑफिस की कमाई से खासे प्रभावित नजर आए। उन्होंने राजमौली को ‘सबसे बड़ा भारतीय फिल्म निर्माता’ बताया। अल्लू अर्जुन स्टारर फिल्म ‘पुष्पा’ के पीछे की दीवानगी और हिंदी भाषी पट्टी में इसकी भारी सफलता पर जौहर ने कहा कि लोग आज फिल्म के तेलुगु गीतों को सुन रहे हैं और उस पर नाच रहे हैं। उनका मानना है कि दक्षिण फिल्मों के लिए उत्साह के पीछे की मुख्य वजह डिजीटल विस्फोट है। उन्होंने कहा, ‘हिंदी फिल्म उद्योग दक्षिण के फिल्म उद्योग से प्रेरित हो रहा है, हॉलीवुड में जो हो रहा है और डिजीटल रूप से जो हो रहा है, उससे प्रेरित हो रहा है।’
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फिल्म निर्देशक ने कहा कि दक्षिण फिल्म उद्योग ने अपनी सामग्री और फिल्मों को दिखाने के अपने तरीके के कारण अपना करिश्मा कायम किया है। स्टार बनने और सुपरस्टार के बारे में करण का मानना है कि खासतौर से हिंदी सिनेमा में ‘यह कलाकार का एक दौर है और अब हम सुपरस्टार के दौर में नहीं जी रहे हैं।’ इस बीच, यह पूछने पर कि वह सोशल मीडिया पर बॉलीवुड से नफरत करो, बॉलीवुड पर प्रतिबंध लगाओ और उन्हें इंगित करते हुए कुछ हैशटैग्स के साथ बॉलीवुड की आलोचना को कैसे देखते हैं, तो इस पर जौहर ने कहा कि वह शुरुआत में इससे प्रभावित हुए लेकिन बाद में लोगों के एक बड़े वर्ग से मिले प्यार और समर्थन पर ध्यान दिया। उन्होंने कहा, ‘भावनात्मक रूप से दो साल पहले यह मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत कठिन समय था।’
राष्ट्रवाद को एक ‘विलेन’ की जरूरत होती है, देशभक्ति को नहीं :कबीर खान
फिल्म निर्देशक कबीर खान ने शनिवार को कहा कि सिनेमा में देशभक्ति और राष्ट्रवाद के बीच एक अंतर है क्योंकि उनका मानना है कि देशप्रेम दिखाने के लिए विरोधी विचार की जरूरत नहीं है। ‘काबुल एक्सप्रेस’, ‘बजरंगी भाईजान’ और ’83’ जैसी फिल्मों को लेकर सराहे गए निर्देशक ने कहा कि उनकी फिल्म उनके खुद के व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है और हर विषय की अपनी मांग होती है। उन्होंने कहा, ‘हर फिल्म, निर्माता का अपना खुद का प्रतिबिंब (जो फिल्म वे बनाते हैं, उनमें) होना चाहिए। हम कभी-कभी फिल्म में तिरंगा दिखाते हैं, लेकिन आज देशभक्ति और राष्ट्रवाद में अंतर है।’ उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रवाद के लिए, कभी-कभी हमें एक विरोधी विचार या ‘विलेन’ की जरूरत पड़ती है। हालांकि, देशभक्ति के लिए आपको ऐसी किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ती। देशभक्ति अपने देश के लिए सच्चा प्रेम है और आपको किसी विरोधी विचार की जरूरत नहीं पड़ती। और (फिल्म 83) के जरिये मेरी यही कोशिश थी। ‘
अपनी फिल्म ’83’ के बारे में खान ने कहा कि उन्होंने इसमें देशभक्ति दिखाने की कोशिश की। यह फिल्म 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम के कपिल देव की कप्तानी में विश्व चैम्पियन बनने पर आधारित है। यह पूछे जाने पर कि वह समाज के एक वर्ग द्वारा पाकिस्तान जाने की सलाह दिए पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करना चाहेंगे, खान ने कहा कि उन्हें बुरा लगता है लेकिन उनका मानना है कि यह सब सोशल मीडिया के चलते हो रहा, जिसने लोगों को किसी को भी कुछ भी कहने की खुली छूट दे दी है।