बरेली। यदि आप कहीं से अल्ट्रासाउंड कराकर आए हैं या फिर कराने जाने वाले हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। आईवीआरआई के वैज्ञानिकों के शोध में अल्ट्रासाउंड के दौरान शरीर पर लगाये जाने वाले जैल में खतरनाक बैक्टीरिया मिले हैं। इंसान के शरीर में ये बैक्टीरिया लंबे समय तक रह सकते हैं। ये कई तरह की इन्फैक्शनल बीमारियों के कारक होते हैं। हाई एंटीबायोटिक दवाइयों से ही ये समाप्त होते हैं।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के शोधार्थी डा. रविचंद्रन कार्तिकेयन ने प्रधान वैज्ञानिक डा. भोजराज सिंह के निर्देशन में देश में 17 राज्यों से 15 कंपनियों के अल्ट्रासाउंड जैल के 63 सैंपल लिये। ये सैंपल आंध्र प्रदेश, आसोम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्णाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के ऐसे अस्पतालों से मई 2021 से दिसंबर तक इकह्वा किए गए, जहां मरीजों का अल्ट्रासाउंड किया जाता है।अस्पतालों से पैक्ड और खुले में रखे गए जैल के सैंपल लिए गए। प्रयोगशाला में इन नमूनों की गहनता से जांच की गई। जांच में 32 सैंपल में खतरनाक जीवाणु ह्यह्ण बुखोल्डेरिया सिपेसिया समूह के जीवाणु के साथ ही पांच अन्य प्रकार के बैक्टीरिया मिले।
डॉ. भोजराज ने बताया कि बुखोल्डेरिया सिपेसिया समूह के बैक्टीरिया से हुए इन्फेक्शन का इलाज करने में कई बार छह माह से अधिक समय भी लग जाता है। हालांकि वैज्ञानिक का यह भी कहना है कि अधिकतर डॉक्टर इस तरह के इन्फेक्शन से बचने के लिए ही अल्ट्रासाउंड जैल का इस्तेमाल करने से पहले पेसेंट को और खुद को मेडिकेटेड क्रीम लगाकर सेनेटाइज कर लेते हैं।
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साधारण एंटीबायोटिक इन बैक्टीरिया पर बेअसर
वैज्ञानिक का कहना है कि बुखोल्डेरिया सिपेसिया समूह के जीवाणु इतने जिद्दी होते हैं कि अक्सर साधारण एंटीबायोटिक का इनपर कोई असर नहीं होता। इलाज के लिए अक्सर उच्च स्तर की महंगी एंटीबायोटिक्स का ही इस्तेमाल होता है। जिन रोगियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उनमें इनका विकास तेजी से होता है। इन जीवाणु के कारण कई बार मरीजों के फेफड़ों में पानी भर जाता है। ऐसे में यदि सही समय पर इलाज न कराया जाए तो मरीजों की जान पर भी आफत आ सकती है।