आजादी के आंदोलन की बात हो और नोएडा के नलगढ़ा गांव का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं। अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने नलगढ़ा गांव में बनाए गए बम आठ अप्रैल 1929 को नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश हुकूमत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में फेंके थे। बम फेंकने के लिए ही 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था।
नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे के किनारे बसा नलगढ़ा गांव पहले हिंडन और यमुना नदी के बीच में पड़ता था। गांव में पहुंचने के लिए पहले नदी और फिर घने जंगल को पार करना होता था। पेड़ों से घिरा होने के कारण गांव की पहचान करना भी आसान नहीं था। यह गांव आजादी के आंदोलन में शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज में कर्नल रहे करनैल सिंह की शरणस्थली रहा है। संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए आजादी के दीवाने भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने दिल्ली के नजदीक होने के कारण नलगढ़ा को ठिकाना बनाया। वह यहां कई वर्ष तक छिपकर रहे। यहीं उन्होंने अंग्रेजों की सेना पर हमला करने की रणनीति और आंदोलन को सही दिशा देने की योजना बनाई। यहां शहीद विजय सिंह पथिक का बड़ा आश्रम था। वह गांवों के नौजवानों को आजादी की लड़ाई के लिए आश्रम में प्रशिक्षण देते थे।
गांव में रखा है बारूद मिलाने वाला पत्थर
बम बनाने के लिए बारूद और अन्य सामग्री को जिस पत्थर पर रखकर मिलाया जाता था, वह आज भी नलगढ़ा गांव के एक गुरुद्धारे में रखा हुआ है। पत्थर में दो गड्ढे हैं, जिसमें बारूद को मिलाया जाता था। ट्रेन में अंग्रेज वायसराय को मारने की योजना भी नलगढ़ा गांव के जंगलों में बनी थी, लेकिन हमले के वक्त दूसरी बोगी में होने के कारण वह बच गया। इसके बाद नलगढ़ा गांव की घेरेबंदी कर क्रांतिकारियों को पकड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन वे चकमा देकर भाग निकले थे।
सांसद डॉ. महेश शर्मा ने बताया कि नलगढ़ा गांव से सात किमी दूर सेक्टर-150 में नोएडा प्राधिकरण ने 23 करोड़ से 28 एकड़ में एक पार्क बनवाया है, जहां भगत सिंह की 12 फुट ऊंची प्रतिमा लगी है। सुखदेव और राजगुरु के स्मारक स्तंभ एवं शिलालेख और शहीद वाटिका भी बनाई गई है। हालांकि, नौ साल बाद भी सेक्टर-145 स्थित नलगढ़ा गांव में शहीद स्मारक बनने का इंतजार है। नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ रमारमण ने वर्ष 2013 के अप्रैल माह में यहां पर शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए 104 बीघा जमीन भी तय की गई थी। लेकिन, यह अभी भी पूरा नहीं हो सका है।