आगरा में यमुना की गंदगी को लेकर एनजीटी सख्त हो गई है। यहां की गंदगी को रोकने के लिए विभिन्न विभागों की टीम बनाकर तीन माह में रिपोर्ट देने और पूरा प्लान बनाकर देने के निर्देश दिए हैं। टीम प्रदेश के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में जांच करेगी। ये आदेश पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ की एक याचिका पर दिए हैं।
पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ ने याचिका दायर कर स्वयं ही बहस की। याचिका में कहा गया कि हर साल पानी में ऑक्सीजन का लेवल अत्यधिक कम होने से हजारों मछलियां व जलीय जीव मरते हैं। ताजमहल के आसपास एक विशेष प्रकार के कीड़े (गोल्डी काइरोनोमस) पनपते हैं, जोकि ताजमहल पर अपनी गंदगी से हरे धब्बे छोड़ रहे हैं। इन दोनों ही समस्या के मूल में पानी की कमी व सीवर का सीधे गिरना है। इस पर कोर्ट ने कहा कि हम पहले ही यमुना वाले शहरों की सफाई के लिए आदेश दे चुके हैं। फिर इसमें और क्या कर सकते हैं।
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इसके जवाब में डॉ. कुलश्रेष्ठ ने कहा कि आगरा की यमुना की समस्या दिल्ली व मथुरा से भिन्न है। पहले पड़ने वाले इन दोनों शहरों के डाउनस्ट्रीम में ओखला व गोकुल बराज हैं, जिससे वहां हर समय पानी की मात्रा रहती है। जबकि आगरा के बाद कोई बैराज नहीं है। जिससे बरसात के अलावा पूरे साल लगभग जीरो फ्लो ऑफ वाटर रहता है। यहां जो भी फ्लो दिखता है वह सीवर या नालों का वेस्ट होता है। इस सीवेज की वजह से मलजनित कॉलिफोर्म बैक्टीरिया की संख्या अत्यधिक हो गई है। मानक के हिसाब से ये 5000 होनी चाहिए जो कि तीस हजार से एक लाख पाई गई है। इसकी वजह से यमुना का पानी शोधन के बावजूद पीने योग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि भूमिगत पानी का ज्यादा दोहन हो रहा है जिससे आगरा में हर साल जलस्तर एक मीटर नीचे जा रहा है।
याचिका पर हुई बहस के बाद एनजीटी ने आदेश दिए कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाई जाए। कमेटी में पर्यावरण, नमामि गंगे, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को रखा जाए। आदेश में कहा गया कि ये कमेटी आगरा के कुल सीवेज जनरेशन की मात्रा, अभी की सीवेज ट्रीटमेंट की क्षमता और वास्तव में एसटीपी की कितनी क्षमता इस्तेमाल हो रही है और नालों से अभी भी बिना ट्रीटमेंट के कितना सीवेज गिर रहा है। इसकी तीन महीने में रिपोर्ट दे। इसके अलावा कमेटी यमुना के अलग-अलग स्थानों पर पानी की गुणवत्ता की जांच रिपोर्ट भी दे। साथ ही यमुना में डिस्चार्ज रोकने के स्टेप्स का ब्योरा भी दे। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसके अनुपालन के लिए नोडल एजेंसी का काम करेगा।